सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड के खूनी साल पर नवीनतम दस्तावेज़

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड के खूनी साल पर नवीनतम दस्तावेज़

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर नजर डालने से पता चलता है कि पिछला साल इस देश के इतिहास में सबसे खूनी साल था, जिसमें मौत की सजा में चिंताजनक वृद्धि और दमन और अत्याचार में गंभीर वृद्धि दर्ज की गई।

यूरोपीय सऊदी मानवाधिकार संगठन (ईएसओएचआर) ने इस बात पर जोर दिया कि उसने मानवाधिकार दस्तावेजों के आधार पर 2023 में सऊदी अरब में कम से कम 172 फांसी की सजाएं देखीं। इसे सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड का सबसे खूनी साल कहा जा सकता है।

यूरोपियन सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स (ईसीडीएचआर) मानवाधिकार दस्तावेजों के अनुसार, इस साल में सऊदी शासन ने मृत्युदंड देने के मामले में अपनी पुरानी नीति पर चहले हुए अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है।

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड का सबसे खूनी साल

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड, मौत की सज़ा पाने वाले

मानवाधिकार दस्तावेज़ों के अनुसार 2023 सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड के लेहाज़ से सबसे खूनी साल रहा है।

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड के दस्तावेज़ों के अनुसार, सऊदी अरब में मौत की सज़ा पाने वालों से सबसे अधिक घरेलू कामगार हैं। इसके बाद दूसरा नंबर पर विदेशी नागरिकों और नशीली दवाओं के दस्करों का नंबर आथा है।

2015 में जब से “सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़” सऊदी अरब के राजा के रूप में सत्ता में आए और फिर अपने बेटे “मोहम्मद बिन सलमान” को इस देश का राजकुमार नियुक्त किया, तब से शाही परिवार द्वारा इस देश के 1257 से अधिक लोगों को मौत की सज़ा दी गई है।

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड पर दस्तावेज़ों के आधार पर यूरोपियन सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स (ईसीडीएचआर) इस बात पर जोर देता है कि पारदर्शिता की कमी और सरकार द्वारा आंकड़े जारी न किए जाने के कारण मौत की सज़ा पाने वालों के वास्तविक आंकड़ों तक पहुँच संभव नहीं है। बहुत संभव है कि मौत की सज़ा पाने वाले लोगों का आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो।

संगठन ने सऊदी अरब द्वारा संयुक्त राष्ट्र को देश में वार्षिक फांसी पर आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध कराने से इनकार करने की ओर इशारा करते हुए जोर दिया कि सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड पर दस्तावेजों से पता चलता है कि सऊदी अरब में मौत की सजा की वास्तविक संख्या घोषित संख्या से कहीं अधिक है।

सरकारी आंकड़ों में मौत की सज़ा पाने वालों की संख्या

सऊदी अरब में महिलाओं के अधिकार

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सऊदी अरब में 2022 की तुलना में फांसी की संख्या में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2023 में फांसी के लिंग के आधार पर, 166 सऊदी पुरुषों और छह महिलाओं को मौत की सज़ा दी गई है।

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड पर नज़र रखने वालों विश्लेषकों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि मौत की सज़ा पाने वालों में 70 प्रतिशत से अधिक ऐसे लोग थे जिनके अपराध या उन पर चलाए गए मुकद्दमें मौत की सज़ा के लायक नहीं थे।

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उदाहरण के लिए, सऊदी अरब ने 2020 में मादक पदार्थों की तस्करी के लिए मौत की सज़ा को ख़त्म करने के बाद 2022 में इसे बहाल कर दिया।

सऊदी अरब में कैसे दी जाती है मौत की सज़ा

सऊदी अरब में मौत की सज़ा तीन तरह से दी जाती है: 1) क़िसास, 2) ताज़ीर 3) हद। इस बीच अंतिम दो मामलों पर मानवाधिकार संस्थाओं और चिंतकों ने चिंता व्यक्त की है।

“हद” के अनुसार मौत की सज़ा इस्लामी कानून में परिभाषित विशिष्ट आरोपों या उन अपराधों के लिए दी जाती है जिन्हें समाज के विरुद्ध अपराध माना जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि सऊदी सरकार असहमति की आवाज़ को दबाने और विरोधियों के कुचलने के लिए इस इस्लामी कानून का दुरुप्योग कर रही है। किसी पाप के लिए अनुशासन (फटकार) के उद्देश्य से जो सज़ा दी जाती है, उसे ताज़ीर कहते हैं।

ताज़ीर (अनुशासनात्मक सज़ा) न्यायधीश के विवेक पर निर्भर करती है। और चूँकि सऊदी सरकार ने सज़ा देने के मामले में न्यायधीश को पूरी तरह स्वतंत्र रखा है इसलिए जज कभी कभी तो छोटे से अपराध और फिर ट्रैफिक सिगनल तोड़ने तक के मामलों में मौत की सज़ा जारी कर देते हैं।

मानवाधिकार दस्तावेज़ों के बारे में कुछ तथ्य

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सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड पर जारी दस्तावेजों के आधार पर यूरोपीय सऊदी मानवाधिकार संगठन (ईएसओएचआर) का कहना है कि इस देश में कई बार तो आरोपी को पूरी प्रक्रिया का पालन किए बिना और परिवार को सूचित किए बिना ही मौत की सज़ा दे दी जाती है।

साथ ही सऊदी सरकार जनता को मृत्युदंड के मामलों की वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं देती है। यह गोपनीयता सऊदी सरकार की खुद को नागरिकों के अधिकारों का समर्थन करने वाली आधुनिक सरकार के रूप में पेश करने की रणनीति का हिस्सा है।

बिन सलमान ने बार-बार सऊदी अरब में सुधारों की समीक्षा करने और शासन प्रक्रिया में सुधार करने का वादा किया है। उन्होंने कानूनों में परिवर्तन किए बिना ही मौत की सज़ा दिए जाने के मामलों का ठीकरा जजों के सर पर फोड़ते हुए उनकी आलोचना की है और जोर दिया है कि सऊदी अरब एक सहिष्णू देश है।

हालांकि सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड पर नज़र डलने से पता चलता है कि दरअसल मौत की सज़ा का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए सऊदी राजा के हथियारों में से एक है।

यूरोपीय सऊदी मानवाधिकार संगठन ने मानवाधिकार दस्तावेजों के आधार पर सऊदी अरब द्वारा मौत की सजा के इस्तेमाल की निंदा की है और वास्तविक संख्या के बारे में चिंता व्यक्त की है। विशेष रूप से, ये दस्तावेज़ बताते हैं कि यह सज़ा अभी भी नाबालिगों पर लागू होती है।

हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार बच्चों को मौत की सज़ा दिया जाना अनुचित है, लेकिन सऊदी अरब में नाबालिगों पर यह सज़ा अब भी जारी की जाती है। यह और बात है कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए इस देश की सरकार मौत की सज़ा पाने वालों के आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं करती है।

सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकार्ड का एक काला पन्ना यह भी है कि इस देश में न केवल अनुचित रूप से कई लोगों को मौत की सज़ा दे दी जाती है बल्कि कई मामलों में तो मौत की सज़ा दिए जाने के बाद मृत्क के पार्थिव शरीर के भी उनके परिवार वालों को सौंपने से इनकार कर दिया जाता है।

 

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