अल-अक्सा तूफान ऑपरेशन और नेतन्याहू का राजनीतिक भविष्य

अल-अक्सा तूफान और नेतन्याहू का राजनीतिक अंत

इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध को लेकर सबसे बड़ा डर जो नेतन्याहू सरकार को सता रहा है वह हिज़्बुल्लाह का इस युद्ध में शामिल होने की संभावना है।

पर्यवेक्षकों का मानना है अगरचे इस युद्ध में हिजबुल्लाह का प्रवेश लेबनान और इस संगठन के भीतर की जटिल गणनाओं पर निर्भर करेगा। लेकिन यही संगठन युद्ध में जाने का निर्णय लेता है, उसे कोई नहीं रोक सकता।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि “अल-अक्सा तूफान” की लड़ाई जिसे हमास आंदोलन और फिलिस्तीनी समूहों ने गाजा पट्टी से शुरू किया था, पिछले तीन प्रमुख युद्धों में से किसी के समान नहीं है, न तो दायरे के मामले में और न ही आश्चर्य की मात्रा के मामले में। 2008 से अब तक इस आंदोलन द्वारा इजरायल के खिलाफ लड़ी गई कोई भी लड़ाई इस हद तक व्यापक और चकित करने वाली नहीं थी।

इस लड़ाई के अंतिम परिणाम चाहे जो भी हों, इजरायली खुफिया और सुरक्षा सेवाओं को बहुत कड़ी सजा मिलने वाली है। जिसमें सभी अधिक सज़ा इजरायली आंतरिक सुरक्षा संगठन या शबाक को मिलने वाली है जो मुख्य रूप से स्थिति का आकलन और भविष्यवाणी करने के लिए जिम्मेदार है। इसी संगठन पर वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी से किसी भी संभावित खतरे का भविष्य करना है।

यदि अक्टूबर 1973 के युद्ध की भविष्यवाणी करने में विफलता के लिए अमन या इज़राइल की सैन्य खुफिया एजेंसी को जिम्मेदार ठहराया गया है, तो अल-अक्सा तूफान युद्ध की बड़ी जिम्मेदारी निस्संदेह इस बार “शबाक” के कंधों पर आ जाएगी। हलांकि “मोसाद” और “अमन” को इस विफलता की ज़िम्मेदारी से बरी नहीं कर दिया जाना चाहिए।

बदले की यह कार्यवाही केवल शाबाक तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इजरायी सेना के कई कर्मचारी भी इसकी ज़द में आएंगे। क्योंकि खबरे यह भी हैं कि हमास के इस प्यापक हमले में की पीछे इजरायली सेना के कई बड़े अधिकारियों का हाथ है। कई अधिकारी हमास से मिले हुए थे और उन्होंने कई अहम और खुफिया जानकारियां इस संगठन को मोहय्या कराई थी।

अल-अक्सा तूफान से जलता इजरायल

अल-अक्सा तूफान और नेतन्याहू का राजनीतिक भविष्य

अल-अक्सा तूफान युद्ध का जो भी संभावित परिणाम हो – जो शुरू से ही पूरी तरह से स्पष्ट है और किसी से छिपा नहीं है – इजरायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के राजनीतिक अंत को निर्धारित करेगा। क्योंकि इसके बाद जिस समिति का गठन किया जाएगा वह इजरायल में पिछले अधिकतर युद्धों की भाति इस बार भी सबसे पहले राजनीतिक नेताओं को हटाने की सिफारिश करेगा। इस तरह, इज़राइल में बेंजामिन नेतन्याहू के विरोधियों को अधिक ताकत और ताकत मिलेगी, और वे नेतन्याहू के नेतृत्व वाले चरमपंथी कैबिनेट के खिलाफ उनकी चेतावनियों का पूरा फायदा उठाएंगे, और इससे नेतन्याहू और उनका मंत्रिमंडल का सत्ता में बने रहने मुश्किल हो जाएगा।

जो चीज़ इस संभावना की मज़बूत करती है वह अल-अक्सा तूफ़ान की लड़ाई में इजरायल द्वारा ईरान पर दोष मढ़ने में व्हाइट हाउस का तेल अवीव का साथ न देना है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन के साथ-साथ फ्रांस और इंग्लैंड जैसे कुछ यूरोपीय नेताओं के इन शब्दों कि “ईरान अल-अक्सा तूफान की लड़ाई में शामिल है और फिलिस्तीनियों को इसे शुरू करने के लिए उकसा रहा है” के संबंध में कोई सबूत नहीं है से पता चलता है कि यूरोप और अमेरिका अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं और एक नए मोर्चे के लिए नेतन्याहू का साथ नहीं देना चाहते हैं।

यह देश चाहते हैं कि किसी भी तरह नेतन्याहू की फाइल बंद हो और उनको लगता है कि अल-अक्सा तूफ़ान से बेहतर कोई समय नहीं हो सकता है कि जब वह इन तमाम समस्याओं के लिए नेतन्याहू को ज़िम्मेदार ठहरा सकें।

ऐसी स्थिति में और नेतन्याहू के जाने के साथ, यह उम्मीद की जाती है कि इज़राइल में धर्मनिरपेक्ष विचार को नई ताकत मिलेगी, खासकर उन लोगों के लिए जो इस शासन में धार्मिक दलों और धाराओं के राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव को समाप्त करना चाहते हैं। क्योंकि ये धाराएँ और पार्टियाँ न्याय व्यवस्था में सुधार की योजना पेश करके इजराइली समाज में गहरे विभाजन पैदा कर दिये है। हद यह है कि इन पार्टियों के कारण इजरायली सेना के भीतर भी विभाजन पैदा हो गया है।

लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध को लेकर सबसे बड़ा डर जो नेतन्याहू सरकार और इजरायल को सता रहा है वह हिज़्बुल्लाह का इस युद्ध में शामिल होने की संभावना है।

इज़राइल अब जिन परिदृश्यों से सबसे ज्यादा डरता है उनमें से एक लेबनान में हिजबुल्लाह के शामिल होने के माध्यम से युद्ध का विस्तार है, भले ही यह मुद्दा लेबनान के अंदर और क्षेत्र में इस पार्टी की जटिल गणनाओं पर निर्भर करता है। पर्यवेक्षकों का मानना है अगरचे इस युद्ध में हिजबुल्लाह का प्रवेश लेबनान और इस संगठन के भीतर की जटिल गणनाओं पर निर्भर करेगा। लेकिन यही संगठन युद्ध में जाने का निर्णय लेता है, उसे कोई नहीं रोक सकता। और अगर ऐसा होता है तो किसी को भी नहीं पता कि न केवल नेतन्याहू और उनकी कट्टरपंथी कैबिनेक का क्या होगा बल्कि इजरायल का भविष्य क्या होगा इसकी भी नहीं पता है।

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