सऊदी अरब में मौत की सज़ा

दावों के विपरीत सऊदी अरब में अब भी नाबालिगों को दी जा रही है मौत की सज़ा

एक मानवाधिकार संगठन एक सऊदी बच्चे की कहानी बताता है, जिसे इस देश की सरकार ने 2019 में सामूहिक मौत की सज़ा में मार दिया था। इस बच्चे को मारने के बाद अब सऊदी शासन उसके परिवार को भी धमका रहा है, जो इस शासन की दमनकारी और क्रूर प्रकृति को और अधिक उजागर करता है।

2016 की शुरुआत से, यूरोपीय ह्यूमन राइट्स वॉच सऊदी अरब सऊदी शासन द्वारा 13 किशोरों की फांसी की निगरानी कर रहा है। इस संगठन द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि जब इन किशोरों को गिरफ्तार किया गया और उन पर आरोप लगाए गए तो वे नाबालिग़ थे।

इस मानवाधिकार संगठन का कहना है कि मौत की सज़ा के मामले में सऊदी अरब में पारदर्शिता की कमी न केवल परिवार में आतंक और भय पैदा करती है बल्कि किसी भी प्रकार का डाटा जारी न किया जाना ऐसी सज़ा पाने वालों के बारे में जानकारी को कठिन बनाता है। सऊदी अरब सरकार की इस अपारदर्शी नीति के कारण निष्पादन की सज़ा पाने वालों उनकी आयु और देश में नाबालिग़ों के मौत की सज़ा के बारे में आंकड़े प्राप्त करना, सज़ा पाने वालों की आयु और गिरफ्तारी की तारीख़ पता करना मुश्किर बनाता है।

अप्रैल 2019 में, सऊदी अरब के आंतरिक मंत्रालय ने इस देश के 37 नागरिकों के सामूहिक निष्पादन की घोषणा की। यूरोपीय सऊदी अरब ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से संकेत मिलता है कि जिन लोगों को सज़ा दी गई उनमें से 6 नाबालिग थे।

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गिरफ्तारी, यातना और निष्पादन

हाल ही में, इस संगठन को पता चला कि अप्रैल में मौत की सज़ा पाने वालों में एक “जबर ज़ुहैर अल-मरहून” भी थे जो इस संगठन में किरोशों की सूची में थे और जब उन्हें गिरफ्तार और सज़ा दी गई तो बालिग़ नहीं थे।

इस मानवाधिकार संगठन द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि मृतक की उम्र 17 वर्ष से अधिक नहीं थी जब उसे 27 फरवरी 2014 को गिरफ्तार किया गया था, और उसने फांसी की सजा तक हिरासत की अवधि जेल में बिताई थी।

नवंबर 2016 में, सऊदी अरब के विशेष आपराधिक न्यायालय ने अल-मरहून और मोहम्मद अल-खातिम और अब्दुल्ला अल-अवजान के लिए प्रारंभिक निष्पादन की सजा जारी की थी क्योंकि उस पर हत्या का आरोप था।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, उन पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह, कातिफ में सुरक्षा गश्ती दल और सरकारी इमारतों पर गोलीबारी जैसे आरोप थे।

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याद रहे कि सऊदी शासन अपने विरोधियों पर इस प्रकार के आरोप नियमित रूप से लागता रहता है।

सऊदी अरब में शाही शासन के किसी भी विरोधी को गिरफ्तार किए जाने के तुरंत बाद उसपर आतंकवाद का आरोप लगा कर विशेष आपराधिक अदालतों में भेज दिया जाता है जहां अधिकांश उनको मौत की सज़ा सुनाई जाती है।

इन लोगों को सज़ा से पहले जेल में यातना, दुर्व्यवहार, उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और उनकी मौत के बाद शासन द्वारा परिवार के सदस्यों को भी धमकियों और उत्पीड़न का इसका सामना करना पड़ता है।

एक व्यक्ति को गिरफ्तार करती सऊदी पुलिस

सऊदी अरब में मौत की सज़ा और परिवार का दर्द

कई बार मौत की सज़ा पाने वाले अभियुक्त को अंतिम समय में अपने परिवार वालों से मिलने नहीं दिया जाता है तो कई बार सज़ा दिए जाने के बाद उन्हें कहां दफ्नाया गया है परिवार वालों को यह तक नहीं बताया जाता है। यह सब परिवार वालों को परेशान करने का तरीक़ा है।

मरहून उन लोगों में से एक हैं जिनके पार्थिव शरीर को न केवल परिवार वालों को नहीं सौंपा गया था बल्कि परिवार को शासन की तरफ़ से कई प्रकार की धमकियों का भी सामना करना पड़ा।

जुलाई 2017 में, सऊदी शासन को लिखे एक पत्र में, संयुक्त राष्ट्र के पत्रकारों ने अल-मोरहून के लिए निष्पक्ष सुनवाई करने और उसके लिए मौत को निलंबित करने का मांग की। संयुक्त राष्ट्र का मानना था कि मौत की सज़ा पाने वाले दूसरे 17 लोगों की तुलना में अल-मरहून पर लगाए गए आरोप इतने गंभीर नहीं है कि उनको यह सज़ा दी जाए। लेकिन सऊदी शासन ने इन सिफारिशों को नज़रअंदाज़ कर दिया और अप्रैल 2019 में अल-मरहून और 17 अन्य सऊदी नागरिकों को सजा दे दी गई।

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों द्वारा निगरानी की गई नवीनतम जानकारी से पता चलता है कि सऊदी शासन ने 2016 से 14 नाबालिग़ों को मौत की सज़ा दी है। ऐसा तब है जबकि इन संगठनों का मानना है कि सऊदी अरब में बच्चों को फांसी देने की संख्या उनके द्वारा हासिल की गई संख्या से कहीं अधिक है।

सऊदी-यूरोपीय ह्यूमन राइट्स वॉच इस बात पर जोर देता है कि सऊदी शासन, अपने दावों के विपरीत, कानूनी उम्र से कम उम्र के बच्चों को फांसी देना जारी रखे हुए है। और सऊदी अरब का यह दावा कि देश में बच्चों के लिए विशेष कानूनों में संशोधन किया है एक कोरा झूठ है। इस देश में संशोधन को तमाम दावों के विपरीद अब भी बच्चों को यह सज़ा दी जा रही है।

इस मानवाधिकार संगठन द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, वर्तमान में सऊदी अरब में कम से कम 9 बच्चों को फांसी की सजा दी जा सकती है, और उनमें से दो, अब्दुल्ला अल-रज़ी और जलाल अल-बाद की मौत की सज़ा निश्चित है।

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