अरामको के शेयरों की कीमत

कैसे इजराइली कंपनियां अरामको के जरिए सऊदी अरब के अहम केंद्रों पर कब्जा कर रही हैं

2016 की शुरुआत में अंग्रेजी पत्रिका “इकोनॉमिस्ट” को दिए एक साक्षात्कार में, बिन सलमान ने घोषणा की कि वह अरामको का निजीकरण करने और उसके शेयरों को शेयर मार्किट में लाने का इरादा रखते हैं।

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान का 2030 का विजन, जिसके केंद्र में कई आर्थिक योजनाएं हैं, उसमें सऊदी अरब की क्षमताओं और आर्थिक शक्ति के लिए गंभीर जोखिम और खतरे शामिल हैं।

2016 की शुरुआत में अंग्रेजी पत्रिका “इकोनॉमिस्ट” को दिए एक साक्षात्कार में, बिन सलमान ने घोषणा की कि वह अरामको का निजीकरण करने और उसके शेयरों को शेयर मार्किट में लाने का इरादा रखते हैं।

कुछ दिनों बाद, इस कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा कि कंपनी दुनिया के वित्तीय बाजारों में अपने शेयरों का “कुछ प्रतिशत” पेश कर रही है।

उस समय, “रॉयटर्स” समाचार एजेंसी ने इस प्रमुख तेल कंपनी के शेयरों को बेचने की संभावना के बारे में एक प्रश्न उठाया था। एक ऐसी कंपनी जिसके बारे में हर कोई मानता है कि वह सऊदी अरब की सबसे अच्छी संस्था और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक में सबसे बड़ी राष्ट्रीय तेल कंपनी है!

रॉयटर्स का प्रश्न था: इस स्थिति वाली कोई संस्था अपने शेयरों का कुछ हिस्सा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को बिक्री के लिए क्यों पेश करती है और दूसरों को भविष्य में इस देश के निर्णयों में हस्तक्षेप करने की अनुमति क्यों देती है?

अरामको शेयरों की बिक्री सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था पर कितनी चोट कर सकती है

सऊदी आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ जमील फ़ारसी ने इसकी पुष्टि की और कहा: “कृपया अरामको को न बेचें, क्योंकि हम आज जो बेचते हैं, वह बाद में वापस नहीं मिल पाएगा। हमें विदेशी निवेशकों को अपनी गर्दन पर हाथ नहीं रखने और दबाव नहीं डासने देना चाहिए।” लेकिन दुर्भाग्यवश, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पांच साल के लिए जेल में डाल दिया गया।

सऊदी अरब में प्रमुख अर्थशास्त्री और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कैदी “एस्साम अल-ज़मील” ने भी इस तेल जाइंट कंपनी की संपत्ति बेचने के खतरों के खिलाफ चेतावनी दी, क्योंकि इस बिक्री में न केवल कंपनी के शेयर शामिल हैं, बल्कि सऊदी तेल और कंपनी के अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में निवेश भी शामिल हैं और इसमें रिस्क है और सऊदी अरब के आर्थिक जोखिम बढ़ाता है।

इस बात की पुष्टि “ऑयल प्राइस” कंपनी ने भी की है। ऑयल प्राइस के अनुसार, सऊदी कंपनी अपनी कुछ अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम संपत्तियों को बेचने पर विचार कर रही है, जिसमें गैस पाइपलाइन, रिफाइनरियां और बिजली संयंत्र शामिल हैं।

दूसरी ओर, इस सऊदी कंपनी की संपत्तियों को सऊदी अरब के निवेश कोष में मिलाने की भी जोखिम है जिसके कारण न केवल इसकी सम्पत्ती मोहम्मद बिन सलमान की 2030 आर्थिक दृष्टि परियोजनाओं में बर्बाद करने का जोखिम बढ़ाता है, बल्कि इसके खतरनाक शासकीय परिणाम भी, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है जिनमे से सबसे महत्वपूर्ण सऊदी अरब की आर्थिक क्षमताओं को जोखिम में डालना है।

सऊदी तेल कंपनी अरामको ने कई इजरायली कंपनियों में निवेश किया है

इजरायली कंपनियों का सऊदी अरब में निवेश

अरामको की संपत्तियों की बिक्री और उसमें इजराइल के प्रभाव की कहानी फरवरी 2022 तक जाती है, यह साल संदिग्ध घटनाओं से भरा रहा, इस साल सऊदी अरब ने कंपनी के 4% शेयर सऊदी अरब निवेश कोष में स्थानांतरित कर दिए, जिसके अध्यक्ष मोहम्मद बिन सलमान हैं।

उस समय, कंपनी ने एक बयान जारी करके घोषणा की: यह लेनदेन एक निजी हस्तांतरण है जिसमें कोई अनुबंध नहीं किया गया है और सऊदी निवेश कोष से शेयरों के हस्तांतरण के लिए कोई राशि प्राप्त नहीं हुई थी।

कुछ हफ्ते बाद, ब्लूमबर्ग ने ऑयल प्राइस का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी कि सऊदी निवेश कोष ने कंपनी के 90 बिलियन डॉलर के शेयर बेचने की योजना बनाई है, और यह उसी समय था जब सामान्यीकरण के गॉडफादर जेरेड कुशनर ने मोहम्मद बिन सलमान और वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की थी।

ठीक एक दिन बाद, वॉल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) ने बताया कि इजरायली कंपनी अवरक्राउड के सीईओ ने पुष्टि की कि इस कंपनी ने पहले ही इजरायली कंपनी के सहयोगियों में निवेश किया है।

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अरामको के अनुबंधों के बारे में संदेहास्पद बात यह है कि कंपनी ने उन सभी कंपनियों के नामों का खुलासा करने से इनकार कर दिया है जिनके साथ उसने अनुबंध किया है। “रिगज़ोन” वेबसाइट ने बताया कि सऊदी कंपनी ने 51 विदेशी और घरेलू कंपनियों के साथ 11 बिलियन डॉलर के 59 खरीद अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए और यह डेटाबेस इन कंपनियों की पूरी सूची प्रकाशित करता है।

यहां सवाल उठता है कि अरामको को कुछ कंपनियों के नाम प्रकाशित करने से क्यों बच रही है?

दूसरा हस्तांतरण अप्रैल 2023 में हुआ, जिसके बाद कंपनी के अन्य 4% शेयर सऊदी अरब निवेश कोष में स्थानांतरित कर दिए गए, जो ब्लैक होल की तरह पैसा निगलता है और किसी प्राधिकरण या संस्था की निगरानी में नहीं है और सीधे मोहम्मद बिन सलमान से संबंधित है। यहां फिर से, कंपनी ने एक बयान जारी किया और जोर दिया कि यह बिना पूर्व सूचना के एक निजी हस्तांतरण लेनदेन था।

इस बार, कंपनी के शेयरों का स्वामित्व सऊदी अरब निवेश कोष से संबद्ध “सनाबेल” कंपनी को हस्तांतरित कर दिया गया, जिसका नेतृत्व मोहम्मद बिन सलमान की शाखाओं में से एक “यासर अल रुमियन” कर रहे हैं।

ग्लोब्स के अनुसार, कंपनी को अरामको के शेयर बेचने के पीछे जोखिम यह है कि सनाबेल ने इनसाइट पार्टनर्स, कोटो, जनरल अटलांटिक, कोलैबोरेटिव, स्ट्राइप्स और केकेआर जैसी 60 से अधिक इज़राइली कंपनियों में प्रत्यक्ष निवेश किया है।

इन हस्तांतरणों के बाद, इस वर्ष मार्च में, कंपनी के अन्य 8% शेयर सऊदी निवेश कोष में स्थानांतरित कर दिए गए, जिससे सऊदी सरकार अरामको के 82% की शेयरधारक बन गई। निवेश कोष का हिस्सा भी 16% तक बढ़ा दिया गया था, जिसे बिन सलमान की विजन परियोजनाओं और इजरायली कंपनियों के साथ संदिग्ध निवेशों में अपनी आय की निगरानी और जवाब दिए बिना खर्च किया गया था।

इस बीच आरामको कंपनी के माध्यम से इजरायल को जरूरी ईंधन की आपूर्ती करके बिन सलमान भी गाजा के विरुद्ध इजरायली हमलो में शामिल हो गए है।

सरकारी संपत्तियों की बिक्री एक खतरनाक रणनीतिक निर्णय है जिसे केवल विशेष मामलों में लागू किया जाता है जैसे कि देश की अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने के लिए या आवश्यक और महत्वपूर्ण परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जरूरी वित्तीय लागतों को पूरा करने के लिए। सऊदी अरब मुहम्मद बिन सलमान की काल्पनिक योजनाओं को पूरा करने के लिए बेधड़क अपनी महत्पूर्ण कंपनियों को शेयरों को बेच रहा है, जो सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था की हत्या करने जैसा कृत्य है।

अब सोचिए अगर इन सऊदी कंपनियों के शेयरों के एक या अधिक खरीदार इजरायली हों तो क्या होगा? सऊदी अरब का भाग्य क्या हो सकता है?

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