सऊदी अरब में विदेशी कामगारों की समस्याएँ और कष्ट असीमित हैं। चाहे वह इस देश पहुँचना हो या फिर नौकरी के दौरान उत्पीड़न और पैसा रोक लिया जाना।
कुछ पैसे कमाने की लालच में हर साल हज़ारों लोग सऊदी अरब में विदेशी कामगार के तौर पर इस देश पहुँचते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि इन विदेशी कामगारों की समस्याओं और कष्टों की कोई सीमा नहीं है।
सऊदी अरब में पहुँचने के साथ ही इन कामगारों की समस्याओं की शुरूआत हो जाती है। जिनमें से काम करने की स्थिति, रहने का स्थान और मालिकों की तरफ़ से उत्पीड़न और पैसे का रोक लिया जाना प्रमुख है। कई मामलों में तो घरों में काम करने वाले नौकरों को शारीरिक उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है।
सऊदी अरब में विदेशी कामगार इस वादे के पहुँचते हैं कि इस देश में उनके लिए पर्याप्त मौके हैं, बेहतरीन सैलेरी है और नौकरी के लिए किसी खास कौशल या शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन वहां पहुँचने के बाद जिस सच्चाई से उनका वास्ता पड़ता है वह बहुत भयानक होता है।
सऊदी अरब में विदेशी कामगारों की स्थिति
वर्तमान में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपींस और नेपाल के 21,000 से अधिक विदेशी कामगार सऊदी अरब में काम कर रहे हैं। यह वह आंकड़ा है जो आधिकारिक रूप से काम करने वालों का है, लेकिन एक बहुत बड़ी संख्या उन कमगारों की भी है जो गैर कानूनी रूप से इस देश में पहुँचे हैं और वहा काम कर रहे हैं। आधिकारिक रूप से पहुँचने वाले 21000 कर्मचारियों में से 9,000 कर्मचारियों को पिछले कई महीनों से वेतन नहीं मिला है।
वेतन न मिलने के मामले की सुनवाई कर रही रियाद कोर्ट ने इन मजदूरों के मामले में कहा कि भंग हो चुकी सऊदीओगर (saudiOger) कंपनी पर अकेले इन मजदूरों का 2.6 अरब सऊदी रियाल यानी 693 मिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है।
सऊदी अरब में विदेशी कामगारों के वेतन रोके जाने का संकट 2016 में शुरू हुआ, जब तेल की कीमतें गिर गईं और सऊदी अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई। तब से सऊदी कंपनियों ने हजारों विदेशी कर्मचारियों का वेतन लटकाए रखा है। वेतन का यह संकट हल होने के बजाए हर बीतते दिन के साथ गहराता जा रहा है।
2023 के अंत में सऊदी औजिया कंपनी और “मोहम्मद अल मजाल होल्डिंग” को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा और परिणामस्वरूप दिवालिया घोषित कर दिया गया। इन दोनों कंपनियों के दिवालिया घोषित होने का मतलब यह है कि यह कंपनियां अपने कर्मचारियों को वेतन और दूसरे लाभ देने में असमर्थ हैं। याद रहे कि इन दोनों की कंपनियों में कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या विदेशी नागरिकों की है। यह वही नागरिक हैं जो कुछ पैसे कमाने के लिए अपने देश और अपने परिवार को छोड़कर यहां पहुँचते हैं। लेकिन अब वेतन रुक जाने के कारण विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
विदेशी कामगारों के बकाया पर मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट
28 फरवरी, 2024 को प्रकाशित ह्यूमन राइट्स वॉच की हालिया रिपोर्ट में, इन कंपनियों के 27 विदेशी श्रमिकों के साथ किए गए कई साक्षात्कारों के आधार पर, संगठन ने घोषणा की है कि इन दोनों कंपनियों में 3 से 20 महीने तक काम करने वाले बहुत से कर्मचारियों को कोई वेतन नहीं दिया है। कंपनी के एक कर्मचारी के अनुसार इस समय उसका कंपनी पर 80 हज़ार सऊदी रियाल (21,333 अमेरिकी डॉलर) बकाया है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि सऊदी अरब में विदेशी कामगारों के लिए अपना बकाया हासिल करने का कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि सऊदी अरब की सरकार कंपनियों से उनका वेतन देने और बकाया का भुगतान करने का आदेश देने के बजाए इन कर्मचारियों पर ही कानूनी निवास न होने या वैध वीज़ा न होने का आरोप लगाकर जेल में डाल देती है।
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सऊदी अरब में विदेशी कामगारों के उत्पीड़न का एक और कारण उनकी अशिक्षित होना और कानून की जानकारी न होना भी है, जिसका कंपनियां फायदा उठाती हैं, और उनपर धौंस जमाकर बिना वेतन दिए अपना काम निकलवाती है।
अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में मानवाधिकार संगठन सऊदी अरब में कंपनियों और नियोक्ताओं की धोखाधड़ी प्रथाओं में से एक का उल्लेख करता है और जोड़ता है: कई श्रमिक जिनके साथ इस मानवाधिकार संगठन ने बात की है, उन्होंने बताया है कि उनके नियोक्ता या जिन कंपनियों में उन्होंने काम किया है, निपटान चेक जारी किए, लेकिन ये चेक बाउंस हो गए।
यह एक ऐसा मुद्दा है जो विशेष रूप से सऊदी ओजिया कंपनी के बांग्लादेशी श्रमिकों से संबंधित है। इस कंपनी ने वेतन के रूप में बांग्लादेशी कर्मचारियों को कई बार ऐसे चेक दिए जो बाउंस हो गए या फिर वह कानूनी रूप से मान्य ही नहीं थे। कई बांग्लादेशी कर्मचारियों ने दावा किया कि इस कंपनी की तरफ से जारी किए गए चेक को कोई बी सऊदी या बांग्लादेशी बैंक स्वीकार नहीं करता है।
अरब देशों में नौकरी की सच्चाई
कई श्रमिक जो बेहतर जीवन की आशा के साथ सऊदी अरब या दूसरे खाड़ी के देश जाते हैं, जब इन वास्तविक्ताओं से रूबरू होते हैं तो वह फंस चुके होते हैं। उनके पास न रुकने के लिए मौका होता है और न वापस जाने के लिए पैसा!
इनमें से कई श्रमिक इन देशों, विशेषकर सऊदी अरब में काम करने की थका देने वाली परिस्थितियों के कारण कुछ समय बाद सऊदी अरब में अपने देशों के दूतावासों में जाने और वित्तीय और यहां तक कि भोजन सहायता मांगने के लिए मजबूर होते हैं।
वर्तमान में, सऊदी अरब में हजारों फिलिपिनी, भारतीय, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी श्रमिकों को अपने वेतन का कई महीनों से इन्तेज़ार है। कंपनियों ने सऊदी अरब में विदेशी कामगारों को वेतन न देने के लिए एक नया तरीक़ा भी निकाला है। कंपनियां इन कामगारों से काम करवाती है और उनका वेतन अलग अलग बहानों से लटकाए रहती है, और समय बीतने के बाद वह उनका वर्क परमिट बढ़ाने के बजाए पुलिस को सूचित कर देती है। कामगारों के पास परमिट न होने के कारण गिरप्तार कर लिया जाता है और अवैध रूप से रहने के कारण जेल भेज दिया जाता है, और फिर वहां से बिन वेतन के उनके देश वापस भेज दिया जाता है।
इससे पता चलता है कि सऊदी अरब में विदेश कामगारों की उत्पीड़न और उनका वेतन रोके जाने की प्रक्रिया केवल दिवालियापन या पैसे की कमी नहीं है, बल्कि यह एक सुनियोजित तरीके से चलाया जाने वाला धंदा है जिसमें सरकार भी पूरी तरह से शामिल है। कंपनिया और सरकार मिलकर विदेशी कामगारों का उत्पीड़न कर रहे हैं।