इजराइल के पतन की शुरूआत कब होगी

इजराइल के पतन का संकेत देते 5 निशान

हालांकि इस देश के नेता शासम को मज़बूत स्थिति में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसे पाँच संकेत है जो इजराइल के पतन की कहानी कह रहे हैं

1999 से 2003 तक इज़राइली कनेसेट के अध्यक्ष अब्राहम बोर्ग कहते हैं: “वास्तविक संभावना है कि हमारी यह पीढ़ी आखिरी ज़ायोनी पीढ़ी होगी।” बोर्ग का मानना था कि ज़ायोनी औपनिवेशिक परियोजना, जो 19वीं सदी में शुरू हुई थी, अपने अंत के करीब है और अब 21वीं सदी में इसका कोई स्थान नहीं होगा।

इजराइल के पतन का संकेत देते 5 मुख्य कारण

उन्होंने 2003 में एक लेख में इसकी भविष्यवाणी की थी, और अब, उस लेख के प्रकाशन के बीस से अधिक वर्षों के बाद, इजरायली इतिहासकार इलान बाबा ने गाजा के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के साथ, उन्हीं भविष्यवाणियों को दोहराया और जोर दिया, “इज़राइल” केवल “इज़राइल” है कोई “सरकार” नहीं, बल्कि दूसरों की भूमि पर एक कब्ज़ाधारी है जिसके अंत की शुरुआत हम देख रहे हैं।

हालाँकि इजराइल का पतन निकट भविष्य में नहीं होगा लेकिन बैबेल मानते हैं, पतन इज़राइल का भाग्य है और “हमें अभी से तैयारी करनी चाहिए।” इस संबंध में, बाबा कई संकेतकों की ओर इशारा करते हैं, जो उनकी राय में, इज़राइल के पतन की शुरुआत करते हैं।

1. इजराइली गृह युद्ध

गाजा युद्ध की शुरुआत से कुछ महीने पहले, इज़राइल ने एक शासन के रूप में नेतन्याहू के खिलाफ उनके न्यायिक सुधारों के विरोध में सैकड़ों हजारों इज़राइलियों के बड़े पैमाने पर प्रदर्शन देखे, जिसे “न्यायिक सुधार संकट” के रूप में जाना जाता है।

नेतन्याहू की दक्षिणपंथी कैबिनेट इज़राइल के इतिहास में सबसे चरम और नस्लवादी कैबिनेट में से एक है। यह कैबिनेट ऐसे समय में अस्तित्व में आया जब इज़राइल “धर्मनिरपेक्ष ज़ायोनीवाद” और “धार्मिक ज़ायोनीवाद” के बीच पहले से कहीं अधिक आंतरिक विभाजन का सामना कर रहा था।

बाबा इस मतभेद और विभाजन को इजराइल के पतन की शुरुआत मानते हैं और कहते हैं कि अगर इस समय “इज़राइल” के समाज में एकता देखी जा रही है, तो निस्संदेह गाजा युद्ध के अंत के साथ इस एकता का अंत हो जाएगा और ज़ायोनी शासन के पतन की शुरूआत हो जाएगी। पड़े पैमाने इजराइल में संघर्ष होंगे और, और धार्मिक-धर्मनिरपेक्षों के बीच युद्ध फिर से छिड़ जाएगा।

हमास के हमले के बाद जलता इजराइल

2. सुरक्षा और स्थिरता का अभाव

एक और कारण जिसे इजराइल के पतन को तौर पर देखा जा सकता है वह इस देश में सुरक्षा और स्थिरता का अभाव है। “इजराइल” में यहूदियों की उपस्थिति ही इसकी सुरक्षा और नींव है। यही वह विषय था जिस पर “थियोडोर हर्ज़ल” ने ज़ायोनीवाद की योजना बनाई और इसके आधार पर 1948 में “इज़राइल” की स्थापना की गई।
इज़राइल की स्थापना इस बुनियादी विश्वास पर की गई थी कि यहूदी अपने देश के अतिरिक्त और कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे।

फिर भी, कई कारणों से “इज़राइल” यहूदियों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सका। इस विफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिंसा और यहूदी बस्तियों के निर्माण का विस्तार है, जिसका इस्तेमाल 75 वर्षों से अधिक समय से फिलिस्तीनियों के खिलाफ किया जा रहा है।

फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नस्लीय भेदभाव जारी रहना, उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा करना, उनके घरों को नष्ट करना और उनको मानवीय अधिकारों से वंचित करना इजराइल के पतन का मुख्य कारण हो सकते हैं। इसके अलावा सीरिया और लेबनान के साथ लगातार युद्ध और “अक्सा स्टॉर्म” ऑपरेशन में इस देश की सेना और इंटिलीजेंस की विफलता ने इजराइल में सुरक्षा की स्थिति को कमजोर किया है और इससे देश में अस्थिरता बढ़ी है, और यह ज़ायोनी शासन के रूप में इजराइल के पतन की शुरुआत के सबसे महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है।

इसके अलावा, “इजराइल” दुनिया के सभी यहूदियों के लिए एक “देश” नहीं बन सका, जैसा कि ज़ायोनी योजना की मांग थी, हालांकि 19वीं और 20वीं शताब्दी में हमने “इजराइल” में यहूदी आप्रवासन की लहरें देखीं, लेकिन 21वीं सदी में , इन आप्रवासन की प्रक्रिया का उटला रूप देख रहे हैं। गाजा युद्ध से पहले से ही बहुत से यहूदी इस देश को छोड़कर जा रहे थे लेकिन युद्ध ने इस प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया है। इजरायल इस समय लोगों के देश छोड़कर जाने के संकट से जूझ रहा है।

जहां 2020 के अंत तक 750,000 से अधिक यहूदी इजराइल से पलायन कर चुके थे, वहीं 2020 से 2022 तक यह संख्या बढ़कर 900,000 से अधिक हो गई। पिछले 7 अक्टूबर से अप्रवास की ये लहरें अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी हैं।

नए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अमेरिका और यूरोप में रहने वाले यहूदी इजराइल में रहने वाले यहूदियों की तुलना में अधिक खुश महसूस करते हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका इज़राइल में रहने वाले यहूदियों की युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे वे यूरोप और अमेरिका में प्रवास करने में खुशी देखते हैं।

लंदन में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन

3. फिलिस्तीनी के लिए “अभूतपूर्व” वैश्विक समर्थन

और और संकेतक जो इजराइल के पतन की तरफ़ इशारा कर रहा है वह विश्व स्तर पर फिलिस्तीन के लिए बढ़ता समर्थन है। इजराइली युद्ध की शुरुआत के बाद से, फिलिस्तीनी मुद्दे को “अभूतपूर्व” सार्वजनिक समर्थन मिला है, खासकर पश्चिमी देशों में। हमने कई यूरोपीय शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और चौराहों पर फ़िलिस्तीनी झंडे लहराते हुए देखा।

अंग्रेजी अखबार “फाइनेंशियल टाइम्स” इस बात पर जोर देता है कि, जबकि पिछले वर्षों में फिलिस्तीनी मुद्दे को भुला दिया गया था और इजरायल के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्ण समर्थन के कारण पश्चिम में उदासीनता का सामना करना पड़ रहा था, हाल के युद्ध ने वैश्विक जनता में गहरा बदलाव ला दिया है।

गैलप फाउंडेशन के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि फ़िलिस्तीनियों के लिए अमेरिकियों की युवा पीढ़ी का समर्थन पुरानी पीढ़ियों की तुलना में काफी बढ़ गया है। इजराइली इतिहासकार इलान बेब के अनुसार, विश्व जनमत में बदलाव के कारण वह वह बहुत से लोग जो फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं वह इजराइल को एक रंगभेदी शासन के रूप में देखते हैं और उनको विश्वास है उसका वैसा ही अंत होगा जैसे कि दक्षिण अफ्रीका में हुआ था।

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यह वही परिदृश्य है जिसका उल्लेख मिस्र के एक महान विचारक डॉ. अब्दुल वहाब मसिरी ने 15 साल पहले किया था और कहा था कि इज़राइल फिलिस्तीनी प्रतिरोध की समस्या को हल नहीं कर पाएगा और उसे दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के समान ही भाग्य का सामना करना पड़ेगा।

उनके अनुसार, मुक्ति आंदोलनों को किसी भी ताकत से हराया नहीं जा सकता और यह बात इतिहास में साबित हो चुकी है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अब्राहम बोर्ग ने भी ध्यान दिलाया और कहा, फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन का दमन इसे नष्ट नहीं कर सकता है, इसलिए, वह भेदभाव और रंगभेद को समाप्त करने का आह्वान करते हैं, क्योंकि फिलिस्तीनियों का खून बहाने से केवल और अधिक प्रतिरोध होगा, और इससे इज़राइल को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

इजरायल में गरीबी जो इजराइल के पतन का कारण बन सकती है

4. गरीबी दर में वृद्धि

जनवरी 2023 में, हिब्रू अखबार “जेरूसलम पोस्ट” ने एक सर्वेक्षण के नतीजे प्रकाशित किए जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि हर पांच में से एक इजरायली गरीबी रेखा से नीचे रहता है।

2021 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 30% “इजराइली” किसी न किसी रूप में गरीबी का सामना कर रहे थे, यानी एक तिहाईल इजराइली गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे थे। यानी एक तिहाई इजरायली।

आने वाले वर्षों में गरीबी दर में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हुए यहूदी इतिहासकार बाबा कहते हैं कि “इजराइल” के पास एक बड़ी और सफल अर्थव्यवस्था बने रहने के लिए आवश्यक ताकत और शक्ति नहीं होगी, और इससे इजराइल के पतन में तेजी आएगी।

5. इजराइल का अस्तित्व विदेश सहायता पर निर्भर है

फ़िलिस्तीन में इज़राइल की स्थापना ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विकल्प के रूप में की गई थी। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए यहूदियों ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद की शक्ति का लाभ उठाया, एक ऐसी शक्ति जिसने ज़ायोनी निवासियों को अपना अद्वितीय अस्तित्व बनाने और फिलिस्तीनियों के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा और भेदभाव लागू करने में मदद की। इसलिए, यह इंग्लैंड ही था जिसने वर्तमान संकट की नींव रखी और फ़िलिस्तीन से निकलने के बावजूद इसने फिलिस्तीनियों को कभी भी आज़ाद नहीं होने दिया!

ज़ायोनीवाद की जड़ों को 19वीं सदी के यूरोपीय साम्राज्यवाद की जड़ों में तलाश किया जाना चाहिए। कई लोगों का मानना है कि 70 वर्षों से अधिक समय तक इज़राइल का अस्तित्व इस ज़ायोनी परियोजना की सफलता के कारण नहीं है, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैंड के विदेशी समर्थन और सहायता पर निर्भर करता है।

विदेश पर निर्भरता ने इजराइली समाज को दुर्बल और समाजिक एवं मानसिक समस्याओं और संकटों से ग्रस्त समाज बना दिया है। यह एक ऐसा समाज बन गया है जिसका हर अंह अपने आप में सुरक्षा की कमी महसूस करता है और निकट भविष्य में यह इजराइल के पतन का अहम कारण बन सकता है।

विदेश पर निर्भरता और सुरक्षा की कमी के कारण 1980 के दशक में इजराइल में “ज़ायोनीवाद के बाद” आंदोलन का उदय हुआ। अल-मसीरी के अनुसार, इस आंदोलन का अर्थ है “ज़ायोनीवाद का अंत” और यह आंदोलन इजरायली समाज की वर्जनाओं को तोड़ता है।

 

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