सऊदी अरब में इजराइल के गुप्त प्रभाव का विस्तार

सऊदी अरब में इजराइल के गुप्त प्रभाव का विस्तार

कुछ महत्वपूर्ण संस्थानों ने जांच ने सऊदी अरब में इजराइल के गुप्त प्रभाव और खतरनाक गतिविधियों के प्रसार का पता लगाया है।

इस जांच में उन कर्मचारियों और अधिकारियों के नाम की एक लिस्ट सामने आई है जिन्होंने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के इशारे पर देश में इजराइल के प्रभाव को बढ़ाने का काम किया है।

सऊदी अरब में इजराइल का बढ़ता प्रभाव

सऊदी विपक्षी वेबसाइट “खत अल-बलद” ने हाल ही में एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की है और उसमें सऊदी अरब में इजराइल से संबंधित उन लोगों के नामों का खुलासा किया है जो इस देश में इजराइल के प्रभाव को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।

सऊदी विपक्षी वेबसाइट ने जोर दिया कि उसने सऊदी अरब में इजराइल की खतरनाक गतिविधियों को का पता लगाया है।

“ज़ायोनिस्ट और सऊदी अरब में इसके पांचवें स्तंभ” शीर्षक से जारी इस शोध से पता चलता है कि सऊदी अरब में इजरायल पर प्रतिबंध होने के बावजूद इस शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के बारे में सोंच रहा है।

याद रहे कि सऊदी अरब के राजा शाह सऊद ने 1963 में इजराइल के साथ किसी भी प्रकार के संबंध पर प्रतिबंध लगाया था और उसका उल्लंघन पर कठोर सज़ा का प्राव्धान किया था।

लेकिन हाल का व्यवहार बताता है कि सऊदी अरब में इजराइल के संबंध में विचार कितने बदल गए हैं।

यह शोध इस बात पर जोर देता है कि 2017 में, मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी अरब के कानूनों से इस कानून (इजराइल के साथ संबंध पर प्रतिबंध) को संबंधित विभागों और से बिना परामर्श किए और उनकी राय जाने हटा दिया है।

वेबसाइट के अनुसार, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस द्वारा कानून को हटाए जाने के बाद इजराइल के प्रतिनिधिमंडल सऊदी अरब के रास्ते पर चले गए, और सऊदी अरब में इजराइल के समर्थकों ने उनका स्वागत किया और उनके लिए लाल कालीन बिछाई।

बिन सलमान के युग में सऊदी अरब में इजराइल के गुप्त प्रभाव का विस्तार

सऊदी अरब के किन किन विभागों में हैं इजराइल का प्रभाव

बिन सलमान के सत्ता में आने के बाद सऊदी अरब में इजराइल का प्रभाव काफ़ी बढ़ा है और क्राउन प्रिंस के प्रत्यक्ष समर्थन के साथ इस देश के कई क्षेत्रों में इजराइली संगठनों और कंपनियों की गतिविधियां और सहभागिता शुरू हुई है।

सऊदी अरब में इजराइल का समर्थन, विशेष रूप से मोहम्मद बिन सलमान का इजराइल के लिए समर्थन, सऊदी अरब तक सीमित नहीं है। बिन सलमान ने तीन अन्य लोगों के साथ, सदी के समझौते जिसे अब्राहम समझौते के नाम से भी जाना जाता है पर हस्ताक्षर करने के लिए अरब देशों के शासकों को लुभाने और साथ आने के लिए प्रेरित करने के काम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सऊदी अरब में इजराइल के प्रभाव को बढ़ाने में तीन अहम व्यक्ति

इस प्रक्रिया में पहला व्यक्ति जिसने मोहम्मद बिन सलमान के साथ मिलकर सहयोग किया, वह जारेड कुशनेर था, जो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सलाहकार और दामाद थे।

शोध में उल्लिखित दूसरे व्यक्ति जेसन ग्रीन बिली हैं, एक अन्य रूढ़िवादी यहूदी जो एक ट्रम्प सलाहकार थे।

इस शोध के अनुसार वह तीसरा मोहम्मद बिन सलमान को इस समझौते में शामिल करने में अहम किरदार अदा किया वह बशरत जोएल रोसेनबर्ग है। यह इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सहित कई इजराइली अधिकारियों के सलाहकार थीं।

 

मोहम्मद बिन सलमान ने जोएल रोसेनबर्ग को कई बार सऊदी अरब का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया और इन यात्राओं के दौरान दो बार उनसे मुलाकात की।

इन बैठकों के दौरान, सऊदी क्राउन प्रिंस ने रोसेनबर्ग को सऊदी अरब में एक आराधनालय और एक चर्च बनाने के इरादे के बारे में सूचित किया।

लेकिन जब सऊदी विद्वानों ने मुहम्मद बिन सलमान के इरादे के बारे में पता चला, तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पैगंबर के कुछ हदीस ने सऊदी अरब में दो धर्मों के अस्तित्व को हराम बताया है, और इस प्रकार बिन सलमान को उनके इरादे से पीछे हटाया।

इसके अलावा, मोहम्मद बिन सलमान ने इम्पैक्ट एसई (Impact-se) में काम करने वाले “मार्क्स शेफ” और “एलिड ब्रॉडो” की प्रत्यक्ष देखरेख में सऊदी अरब की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किया।

ट्रम्प द्वारा समर्थित अब्राहम समझौते में कई अरब देशों ने इजराइल के साथ संबंध स्थापित ए

इज़राइल, सउदियों की सोच को बदलने की कोशिश कर रहा है

सऊदी अरब में इजराइल का प्रभाव की हद यह है कि मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी पाठ्यपुस्तकों में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो बदली गई वह इन किताबों से “इजराइली दुश्मन” शब्द का हटाया जाना था।

इसी के साथ ही सऊदी पाठ्य पुस्तकों से फिलिस्तीनी इंतेफ़ा के साथ साथ कई अहम चीज़ों को भी हटाया गया।

इजराइली कंपनी “इम्पैक्ट-इसई” (Impact-se) के बारे में यह कहना महत्वपूर्ण है कि यह वही संस्था है जो संयुक्त अरब अमीरात के स्कूलों के पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने और देश के पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए भी जिम्मेदार है।

“इस्लामिक वर्ल्ड यूनियन” नाम की एक धार्मिक संस्था ने सऊदी अरब में इजराइल की दोस्ती के बीज डालने और दोनों देशों के बीच दुश्मनी को समाप्त करने और रियाद वल तेल अवीव के बीच सह- अस्तित्व के विचार को फैलाने में अहम भूमिका निभाई।

सऊदी अरब में इजराइल के समर्थन में काम करने के लिए इस धार्मिक संस्थान ने कई प्रचारक रखे थे। “मोहम्मद अल- ईसा”, जिन्होंने “टाइम्स ऑफ इज़राइल” जैसे हिब्रू और इजरायल के समाचार पत्रों में काम किया है को “ज़ायोनिस्ट का इमाम” या “ज़ायोनिज़्म का ध्वजावाहक” के रूप में वर्णित किया गया है।

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सऊदी अरब में इजराइल के समर्थक तीन लोगों की सहायता से मोहम्मद अल-ईसा इस देश में अपनी ज़ायोनी गतिविधियों को अंजाम देता है।

इनमें से एक Irena Tsokerman (अरीना टोसकर्मन) हैं जो अधिकतर अधिकतर ईसा कार्यालय प्रबंधक की भूमिका निभाती हैं और बैठकों और उनके लिए योजना के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है।

“गेसन जुबरमैन” और “रब्बी याकूब हर्ज़ुक” दो और लोग हैं, जिनके साथ मिलकर मुहम्मद अल-ईसा सऊदी अरब में इजराइल के समर्थन में गतिविधियां अंजाम देता है।

लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि मोहम्मद बिन सलमान जो सऊदी अरब में इजराइल के प्रभाव के परिणामों से अनजान थे और इस शासन के साथ संबंधों को सामान्यीकरण के रास्ते पर चल रहे थे ने अब अल-अक्सा तूफ़ान के बाद अपना इरादा बदल दिया है, और इस प्रक्रिया को स्थगित कर दिया है।

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