पैदा हुई स्थिति से इजरायल में मज़दूरों की भारी कमी हो गई है, इसे पूरा करने के लिए 10000 भारतीय मजदूर इजरायल जाएंगे!
अल-अक्सा तूफान के बाद पैदा हुई स्थिति से इजरायल में मज़दूरों की भारी कमी हो गई है, जिसके कारण लागत बढ़ी है और रियल स्टेट इडस्ट्री पतन की कगार पर है।
इजरायल में मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 10000 भारतीय मजदूरों को इजरायल भेजने का फैसला किया है
10000 भारतीय मजदूर जाएंगे इजरायल
मजदूरों की कमी से जूझ रहे इजरायल की सहायता के लिए भारत की हरियाणा सरकार ने दस हज़ार लोगों के लिए भर्ती निकाली है। यह 10 हज़ार भारतीय मजदूर इजरायल के श्रम बाज़ार का हिस्सा बनकर मंदी और संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को संभालेंगे।
अपने इतिहास में यह पहली बार है कि जब राज्य सरकार की कंपनी हरियाणा कौशल रोज़गार निगम भारतीय मजदूर और कामगारों को विदेश में काम करने का मौका उपलब्ध करा रही है।
राज्य सरकार ने हालांकि केवल इजरायल के लिए ही भर्ती नहीं निकाली है बल्कि इसमें दुबई, यूके भी शामिल हैं। लेकिन इजरायल इन सबमें खास है। क्योंकि जहां दूसरे दो देशों के लिए केवल 170 भारतीय मजदूरों की भर्ती की जाएगी वहीं इजरायल के लिए हरियाणा कौशन रोज़गार निगम ने 10 हज़ार भर्तियां निकाली है।
अगर प्रक्रिया पूरी होती है तो आने वाले समय में 10 हज़ार भारतीय मजदूर इजरायल पहुँचेंगे।
अलअक्सा स्टार्म और इजरायल में मजदूरों की कमी
“अल-अक्सा स्टॉर्म” ऑपरेशन और गाजा पट्टी के खिलाफ ज़ायोनी शासन के युद्ध के परिणामस्वरूप इजरायल में मज़दूरों भारी कमी और निर्माण सामग्री की उच्च लागत जैसे कारकों ने इज़रायल को मुश्किल में डाल दिया है और रियल स्टेट बाज़ार पतन के कगार पर है।
रियल स्टेट बाज़ार में फिलिस्तीनी मज़दूरों की कमी, विदेशी मज़दूरों की अपने देश वापसी के कारण निर्माण काम में कमी आई है और निर्माण सामग्री की कीमतों में बढ़ोतरी और परिवाहन लागत में तेज़ी ने निर्माण क्षेत्र को पतन के नज़दीक पहुँचा दिया है।
हिब्रू भाषा के अखबार यनेट ने एक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया कि ब्याज दरों में वृद्धि और कब्जे वाले क्षेत्रों में आवास की मांग में कमी के कारण वित्तीय समस्याओं का सामना करने के बाद इजरायल में दर्जनों निर्माण कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं।
इजरायल का रियल स्टेट उद्योग खत्म होने की कगार पर है
यह रिपोर्ट आगे बिल्डर्स यूनियन और “इजरायली” बुनियादी ढांचा उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों की चेतावनी को संदर्भित करती है, जिन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस शासन का औद्योगिक क्षेत्र पतन के कगार पर है।
इजरायल में रियल स्टेट बाज़ार के बड़े उद्योगपतियों के अनुसार इजरायल में मज़दूरों की कमी और बढ़ती लागत के कारण देश का निर्माण उद्योग अब तक के अपने खराब संकट का सामना कर रहा है।
खतरनाक और बेहद गंभीर हालात
इस अखबार ने वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा, ”स्थिति खतरनाक और बहुत गंभीर है और हर कोई इस मुद्दे को महसूस रहा है। इस अधिकारी के अनुसार बाज़ार को उभारने का एकमात्र तरीका इजरायल में मज़ूदूरों की कमी का समाधान करना और निर्माण सामग्री की लागत को कम करना है।
“इज़राइल” यूनियन ऑफ बिल्डर्स एंड हाउसिंग के प्रमुख “राउल सरजो” इस बात पर जोर देते हैं कि कई प्रसिद्ध निर्माण और ठेका कंपनियां को, जिनमें से कुछ सरकारी स्वामित्व वाली हैं, युद्ध के कारण बड़े वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा है।
सरजो याद दिलाते हैं कि युद्ध शुरू होने से पहले आंतरिक विरोध प्रदर्शनों की निरंतरता और विस्तार और नेतन्याहू की कैबिनेट की आर्थिक नीतियों के कारण आवास क्षेत्र पहले से ही संकट में था और अब युद्ध ने उनकी स्थिति को दस गुना बदतर और दयनीय बना दिया है।
सरजो ने चेतावनी दी कि अगर नेतन्याहू की कैबिनेट ने इस क्षेत्र की स्थितियों को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया तो हम एक वास्तविक आपदा देखेंगे। बैंकों को अपना लोन वापस चाहिए, इज़राइल में ज़मीन और घरों की बिक्री निलंबित होने के कारण कंपनियों को नुकसान हुआ है और वे अपना ऋण चुकाने में असमर्थ हैं।
एक शब्द में यह कहा जाना चाहिए कि रियल स्टेट क्षेत्र कठिन समय से गुज़र रहा है बल्कि यह कहा जा सकता है कि इजरायल में मज़दूरों की कमी के कारण उद्योग पतन की कगार पर है।
इजरायल में मज़दूरों की भारी कमी और विदेशी श्रमिकों के लिए संभावनाएं
सरजो का कहना है कि इजरायल में मज़दूरों की भारी कमी एक ऐसा संकट है जिसके बार में जितना सोंचा गया था उससे कहीं बड़ा है और इस संकट से निपटने के लिए विदेशी श्रमिकों की जितनी जल्दी संभव हो भर्ती की जानी चाहिए।
उनके अनुसार, हालाँकि कुछ निर्माण कंपनियों ने दिवालिया होने से बचने के लिए अपनी गतिविधियाँ शुरू कर दी हैं, लेकिन युद्ध के बाद श्रम बाज़ार से 80,000 फ़िलिस्तीनी श्रमिकों की वापसी के कारण, वे केवल 30% क्षमता पर काम कर रहे हैं।
हरियाणा सरकार की योजना और भारतीय मजदूर
इजरायल में भारतीय मजदूर और श्रमिकों को भेजन के लिए राज्य सरकार की कंपनी ने कंस्ट्रक्शन सेक्टर में नौकरियां निकाली है।
गाजा के साथ युद्ध में शामिल इजरायल को अनुमान के मुताबिक इस समय लगभग एक लाख कामगारों की आवश्यकता है। और वह अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए भारत की तरफ़ देख रहा है। और हरियाणा सरकार की यह योजना इजरायल की इसी मांग को पूरा करने का एक कदम है। भारतीय मजदूर इजरायल के कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करेंगे।
इसमें ‘फ्रेमवर्क, शटरिंग कारपेंटर’, ‘आयरन बेंडिंग’, ‘सेरेमिक टाइल’ और ‘प्लास्टिरिंग’ शामिल है।
राज्य सरकार की तरफ़ से जारी विज्ञापन के मुताबिक ‘फ्रेमवर्क, शटरिंग कारपेंटर’ और ‘आयरन बेंडिंग’ के लिए 3-3 हज़ार, ‘सेरेमिक टाइल’ और ‘प्लास्टिरिंग’ का काम करने के लिए 2-2 हज़ार लोगों की ज़रूरत है।
नौकरी के लिए आवेदन करने वाले की शौक्षिक योग्यता कम से कम 10वीं पास हो और उसके पास कम से कम तीन साल का अनुभव भी हो। भारतीय मजदूर को इजरायल भेजे जाने की इस प्रक्रिया में आवेदन करने वाले मजदूर की आयु 25 से 45 के बीच होनी चाहिए।
इजरायल जाने वाला हर भारतीय मजदूर वहां अधिक से अधिक पाँच साल तक काम कर सकता है। उसका वर्क वीज़ा हर साल बढ़ाया जाएगा। इस नौकरी के लिए इंग्लिश जानना जरूरी नहीं है।
कितना पैसा मिलेगा?
इजरायल जाने वाले भारतीय मजदूर का चयन हरियाणा कौशल रोज़गार निगम के मुताबिक ऑफलाइन इंटरव्यू के आधार पर किया जाएगा।
हर व्यक्ति को दिन में 9 घंटे और महीने में 26 दिन काम करना होगा। अगर वह छुट्टी लेना चाहता है तो इजरायल के लेबर कानूनों के तरह वहां की कंपनी से संपर्क करना होगा।
नौकरी करने वाले हर भारतीय मजदूर को 6100 इजरायली न्यू शेकेल मिलेंगे जो भारतीय करंसी में करीब 1 लाख 38 हज़ार रुपये बनती है।
इजरायल जाने वाले हर भारतीय मजदूर के लिए इंश्योरेंस और आवास की व्यवस्था होगी लेकिन उसका खर्चा कंपनी वहन नहीं करेगी बल्कि उसके अपनी जेब से देना होगा।
इजरायल में महंगाई दर और मेडिकल के महंगे खर्चों एवं अवास की कमी को देखते हुए कहा जा सकता है कि हर भारतीय मजदूर को आवास और इंश्योरेंस पर अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना होगा।
नहीं मिलेगा हाथ में पैसा
ध्यान देने वाली बात यहां यह है कि हर महीने मिलने वाला पैसा व्यक्ति के बैंक अकाउंट में जमा होगा और उसे यह पैसा एकमुश्त, ब्याज समेत तभी दिया जाएगा, जब वह कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने के बाद इजरायल को छोड़ देगा।
इसका मतलब है कि इजरायल में नौकरी करने वाले को हर महीने पैसा नहीं मिलेगा। इसके अलावा नौकरी करने वाले व्यक्ति को खाने-पीने का ध्यान खुद ही रखना होगा।
कितना गहरा है इजरायल में श्रमिक संकट
इजरायल में मज़ूदरों की भारी कमी का मुद्दा केवल फिलिस्तीनी श्रमिकों के कारण नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में यह गंभीर संकट उन चीनी और दूसरे विदेशी श्रमिकों के कारण भी है जो युद्ध शुरू होने के बाद इजरायल छोड़ कर चले गए हैं।
चीन ने भूराजनीतिक तनाव और संकट के कारण अपने कार्यबल को इज़राइल की यात्रा करने से रोक दिया है, और मोल्दोवा से मज़दूरों को लाना भी बहुत मुश्किल है।
युद्ध शुरू होने से पहले, विदेशी कार्यबल को 30,000 से बढ़ाकर 50,000 करने पर सहमति के बाद, इजरायली कैबिनेट 10,000 विदेशी श्रमिकों को देश लाने पर सहमति भी दी थी, लेकिन युद्ध ने इन सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया है।
आवास की मांग में कमी
सेंटर फॉर ड्रॉइंग ज्योग्राफिकल मैप्स ऑफ इज़रायल द्वारा किए गए शोध के अनुसार, पिछले साल नवंबर में, आवास बाजार में मांग में भारी कमी देखी गई, खासकर इज़रायल के बड़े शहरों में।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इजरायल में आवास खरीदने की मांग में अशकेलोन में 83%, अशदोद में 45% और तेल अवीव में 50% की कमी देखी गई है। वहीं, 30% इजरायली किराएदार अपना आवास बदलने के बारे में सोच रहे हैं।
वे बड़े घर या इसमें उपलब्ध कमरों और सुविधाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि वे इमारत की मजबूती और उसकी सुरक्षा पर ध्यान दे रहे हैं।